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क्या है Gyanvapi के व्यास तहखाने का राज? पूजा के बाद ज्ञानवापी मंदिर या मस्जिद!
क्या है Gyanvapi के व्यास तहखाने का राज? पूजा के बाद ज्ञानवापी मंदिर या मस्जिद!
Gyanvapi मस्जिद में दशकों के इंतजार के बाद 31 जनवरी को जिला प्रशासन ने अदालत के निर्देश का पालन करते हुए व्यास तहखाने में तत्काल पूजा की व्यवस्था करा दी गयी और इसके साथ ही कई दशक से बंद तहखाने में साफ-सफाई करके, मूर्तियां लाकर रख दी गईं और पूजा-पाठ शुरू हो गई। भगवान गणेश, हनुमान जी, शिवलिंग आदि मूर्तियां कोषागार में रखी हुई थीं, जिन्हें सर्वेक्षण के दौरान यहां रखा गया था लेकिन था स्थिति बरकरीर रखने के लिए मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवजा खटखटया है
Gyanvapi: मुसलमान पक्ष लगाई सुप्रीम कोर्ट में गुहार
प्रशासन ने जैसे ही तहखाने में पूजा की व्यवस्था शुरू कराने की कवायद की, मुसलमान पक्ष भी सक्रिय हो गया। ज्ञानवापी मस्जिद का संचालन करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमिटी ने पूजा के आदेश के खिलाफ 31 जनवरी की रात में ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और व्यास तहखाने में पूजा-पाठ को रोकने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुबह करीब 3 बजे मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई की और उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में जाने का निर्देश दिया गया। इससे इतर, हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर के नीचे आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है।

Gyanvapi: अतीत में होता रहा है पूजा-अर्चना
पहले सर्वे कराने, फिर वजूखाने को सील करने और अब तहखाने में पूजा-पाठ की अनुमति के फैसलों को लेकर मुसलमान पक्ष में काफी नाराजगी है। मस्जिद की देख-रेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन कुछ अखबारों की रिपोर्टों में किए जा रहे इन दावों का खंडन करते हैं कि तहखाने में ब्रिटिश काल से ही हिंदू पूजा करते आ रहे हैं जिसे 1993 में मुलायम सिंह यादव सरकार ने रोक दिया था। उनके मुताबिक, इस दावे का कोई सबूत नहीं है।
क्या है व्यास जी तहखाना?
साल 1991 में सोमनाथ व्यास ने ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन पर अपना मालिकाना हक जताते हुए एक केस दर्ज कराया था। केस दर्ज कराते समय उन्होंने यह दावा भी किया था कि इस तहखाने में मौजूद मंदिर में हिंदू समुदाय के लोग पूजा-पाठ करते हैं। उनका दावा था कि मस्जिद की जगह पहले मौजूद आदि विश्वेश्वर के जिस मंदिर को ध्वस्त किया गया था, उसका कुछ हिस्सा अभी भी मौजूद है और वो यही जगह है, जिसे अब व्यास जी का तहखाना के नाम से जाना जाता है।
सूत्रों की माने तो व्यास का दावा था कि वह ज्ञानवापी परिसर के तहखाने में मौजूद मंदिर के पंडित थे और अदालत में उन्होंने भगवान विश्वेश्वर का सखा बन कर यह केस दर्ज कराया था। मार्च 2000 में पंडित सोमनाथ व्यास का निधन हो गया और उसके बाद वकील विजय शंकर रस्तोगी स्वयंभू भगवान का मुकदमा लड़ते आ रहे हैं।

Gyanvapi: मुसलमान पक्ष की दलील
दरअसल, हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है, जहां करीब 2,000 साल पहले काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण हुआ था। हिंदू पक्ष का यह भी दावा है कि साल 1664 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वा दिया था और उसी जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ था।
लेकिन, मुसलमान पक्ष इस दावे को सिरे से नकार देता है। उसका कहना है कि इस जगह पर न तो व्यास परिवार ने और न ही किसी हिंदू ने कभी भी पूजा नहीं की है। साल 1993 में यहां पूजा-पाठ बंद कराने की बात को भी मुसलमान पक्ष सही नहीं मानता और न ही वहां किसी मूर्ति के होने की बात को सही मानता है।
वजूखाने में शिवलिंग होने का दावा
एएसआई ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में यह बात कही कि मंदिर के अवशेषों से ही मस्जिद का निर्माण हुआ और आज भी वहां मंदिर के तमाम अवशेष मौजूद हैं। सर्वे के दौरान ही 16 मई 2022 को ज्ञानवापी स्थित वजूखाने में आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग मिलने का दावा किया गया। उसी दिन हिंदू पक्ष की मांग पर अदालत के आदेश से वजूखाने को सील कर दिया गया।
बता दें एएसआई के सर्वे के दौरान ही मई 2022 को ज्ञानवापी स्थित वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था। अदालत में याचिकाकर्ताओं ने यही मांग की थी कि ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर यह पता लगाया जाए कि जमीन के अंदर का भाग मंदिर का अवशेष है या नहीं। इन्हीं दावों के परीक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) से सर्वे कराया गया था।
साल 1991 और पूजा स्थल कानून का हवाला
बाबरी मस्जिद 90 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा, तब अयोध्या के अलावा ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही मस्जिद पर भी हिंदू पक्ष अपना दावा जता रहे थे
1991 के पूजा स्थल कानून का हवाला देते हुए मुसलमान पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद को भी कानून के जरिए उसी रास्ते पर ले जाने की कोशिश की जा रही है, जैसे बाबरी मस्जिद को विवादित बनाकर पहले गिरा दिया गया और फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
यह कानून 1990 के दशक में तब लाया गया, जब देश भर में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ रहा था। अयोध्या के अलावा वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही मस्जिद पर भी हिंदू पक्ष अपना दावा जता रहे थे। चूंकि अयोध्या का राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पहले से ही कोर्ट में था इसलिए 1991 के कानून में इसे छूट दे दी गई और बाकी जगहों पर सांप्रदायिक सद्भाव खराब न हो, इसलिए यह कानून बना दिया गया। इस कानून में 15 अगस्त 1947 की डेट कटऑफ के तौर पर तय कर दी गई।
क्या है पूजा स्थल कानून?
‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट’ यानी पूजा स्थल कानून साल 1991 में बना था। उस वक्त केंद्र में पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। इस कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले भारत में जिस भी धर्म का जो पूजा स्थल था, उसे किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदला नहीं जा सकता। अगर कोई ऐसा करने का प्रयास करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
हालांकि कई लोग इसलिए भी इस कानून का विरोध करते हैं कि 1947 से ठीक पहले तमाम पूजा स्थल तोड़े गए, उन्हें दूसरे धर्म के पूजा स्थल में तब्दील कर दिया गया, ऐसे में 15 अगस्त 1947 का कट ऑफ तार्किक नहीं है।