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Ariyar Bariyar की अद्भुत महिमा,आस्था से लेकर अस्तित्व का वरदान

Ariyar Bariyar के नाम से मशहूर अदभुत पेड़ लाखों माताओं का विशिष्ट दूत के रूप में बनता है सन्देशवाहक

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Ariyar bariyar
Ariyar Bariyar | Ariyar bariyar ki adbhut mahima

उत्तर भारतीयों यानी पूरबियों का जीवित पुत्रों की मां का त्योहार है जिउतिया। इसका प्रचलित नाम जीवित्पुत्रिका (Jiutputrika) है। आश्विन (क्वार माह) कृष्ण पक्ष अष्टमी को यह तप-पर्व पड़ता है। वे सारी नारियाँ जिनके पुत्र जीवित होते हैं, वे उनके दीर्घायु और कल्याण हेतु निर्जला व्रत रखती हैं।

Messengersong hai ‘ए अरियार ए बरियार’

जितिया या जिउतिया के दिन ariyar bariyar कहे जाने वाले इस पौराणिक पेड़ लाखों माताओं का सन्देशवाहक बनता है। पौधा ढूँढ़ कर उसके चहुँओर सफाई कर उसे विशिष्ट दूत की तरह सजा दिया जाता है। माताएँ अक्षत रोली से ‘अँकवार’ देती हैं (भेटती हैं)। बरियार (अन्य नाम बला) का अर्थ होता है बलवान। संतान को समिर्पित माताएं ariyar bariyar के पौधे को संदेशवाहक के रूप में पूजती है और भगवान राम को संदेश भेजती है कि मेरी भी पुत्र आपके दूत (बजरंग बली) के जैसा बलवान होना चाहिए।

Bariyar के पौधे को पूजने की परंपरा

यह एक ऐसा पौधा है जो भगवान राम और साधनारत असंख्य माताओं के संदेश को दूत बनकर पहुँचाता है। अर्थात मां को अपने बेटे के जीवन के लिए कहे हुए वचनों को भगवान राम से जाकर सुनाता है।

जब मां  कहती है “ये अरियार का बरियार जा के कहिहअ राजा रामचन्द्र जी से गणेश क माई खर जीयूतिया भूखल हई। ‘सोने की लाठी चानी की मूठ मोर बेटा मार के अईहअ मराके मत अईहअ”। 

बरियार का पेड़ लगभग 2-3 फुट का होता है। इसके फूल पीले और बीज काले होते हैं। इसके पत्ते तुलसी के पत्ते के जैसे होते हैं। बरियारी के पत्तों का साग भी बनाया जाता है।

Bariyar Plant और जिउतिया (जीवित्पुत्रिका)

जिउतिया (जीवित्पुत्रिका) नामक एक ऐसा पर्व है जिसमें माताएँ अपने संतान की मंगलकामाना के लिए निराजल व्रत रहने के बाद दोपहर में चिचिहड़ा की दातून कर स्नान करती हैं, फिर अरियार बरियार (ariyar bariyar) नामक पौधे के चारों और बैठकर उसकी पूजा-अर्चना कर उसे सिंदूर से टीककर जल चढ़ाते हुए एक गीत के माध्यम से माता सीता के पास अपने संतान की मंगल कामना का संदेश भेजती हैं।

  • ए अरियार का बरियार,
  • सीता से कहिह भेंट अँकवार,
  • मोर पुत्र मारि आवें, मराय न आवे।

(भावार्थ- हे अरियार, का बरियार! तुम सीता को अपने अँकवार में भरकर कहना कि मेरा पुत्र किसी भी विघ्न-वाधा को मारकर ही आवे खुद मर कर ना आवे।)

लोकपरंपरा में Ariyar bariyar पूजन

लोक को और लोक की कला को उपेक्षा के भाव से देखने वाले लोगों को जिउतिया के ‘ए अरियार का बरियार’ वाले इस गीत को या लोक के किसी भी गीत का मर्म उसी को खुलेगा जो अपनी पार्थिव वासना और अहंकार का त्यागकर खुद को जीवन के हर एक रेशे रेशे से जोड़कर देखेगा। कला चाहे किसी भी तरह की हो उसका प्रयोजन मानव संवेदना को बचाए रहना और मानव चेतना के स्तर को निरंतर ऊपर उठाना ही होता है।

Ariyar bariyar ki adbhut mahima | bariyar | Ariyar Bariyar

दरअसल, परंपरागत गीतों से भावनात्मक जुड़ा हुआ जिउतिया के व्रत पर के मौके पर पेड़-पौधे या यूं कहिए वनस्पतियों के उपयोग का विशेष महत्व है। चिचिहड़ा (चिरचिटा या अपामार्ग ) पौधे की दातून करने से लेकर बरियार के पेड़ की पूजा की बात हो, सबका एक धार्मिक महत्व है। संतान की दीर्घ आयुु और बलवान होने के लिए व्रती औरतें जुटती हैं और फिर बरियार बोल पर आधारित परंपरागत गीत के साथ बरियार पूजतीं हैं।

बला/बरियार (bariyar) क्या है ? 

यह देश के सभी प्रान्तों में वर्ष भर तक पाया जाता है पर वर्षां ऋतु में यह खेतों और खेतों की मेड़ों पर अधिकतर होता है। इसकी जड़ व डण्डी बहत मज़बूत होती है जो आसानी से नहीं टूटती। इसकी चारों जातियों में गुणों की दृष्टि से विशेष अन्तर नहीं होता इसलिए किसी भी जाति की बला का उपयोग किया जा सकता है।

बला/बरियार चार प्रकार की होती है इसलिए इसे ‘बलाचतुष्टय’ भी कहते हैं। इस की और भी कई जातियां हैं पर बला, अतिबला, नागबला और महाबला – ये चार जातियां ही ज्यादा प्रसिद्ध और प्रचलित हैं। बलाद्वय में बला और अतिबला तथा इनमें नागबला मिलाने पर बलात्रय होता है। भाव प्रकाश में महाबला मिला कर बलाचतुष्टय किया गया। इसमें राजबला मिला कर बलापंचक कहा जाता है। मुख्यतः इसकी जड़ और बीज को उपयोग में लिया जाता है ।

ऐसे पहचानें Ariyar Bariyar

यह झाड़ीनुमा 2 से 4 फ़ीट ऊंचा क्षुप होता है जिसका मूल और काण्ड (तना) सुदृढ़ होता है। पत्ते हृदय के आकार के आयताकार, लट्गाकार, गोल दन्तुर, रोमश, अकेले, 7-9 शिराओं से युक्त, 1 से 2 इंच लम्बे और आधे से डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे पीले या सफ़ेद तथा 7 से 10 स्त्रीकेसर युक्त होते हैं। बीज छोटे छोटे, दानेदार, गहरे भूरे रंग के या काले होते हैं उन्हें ‘बीजबन्द’ कहते हैं।

आयुर्वेदिक औषधि है Bariyar

बला एक प्राचीन आयुर्वेदिक औषधि है जिसे वनस्पति शास्त्र में सिडा कोर्डिफोलिया (sida-cordifolia) नाम से जाना जाता है। यह शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा और ताकत प्राप्त होती है। बला हड्डियों की मजबूती, मसल्स और जोड़ों की मजबूती, वीर्य बढ़ाने, मूत्राशय में जलन को ठीक करने तथा हृदय संबंधी बीमारियों को ठीक करने में मदद करता है। इसके अलावा भी इसके तमाम औषधीय गुण होते हैं।

Bariyar का medicinal गुण 

चारों प्रकार की बला शीतवीर्य, मधुर रस युक्त, बलकारक, कान्तिवर्द्धक, स्निग्ध एवं ग्राही तथा वात रक्त पित्त, रक्त विकार और व्रण (घाव) को दूर करने वाली होती है।

बला/बरियार के उपयोगी भाग (Useful Parts of Bala)

– जड़ (root)
– छाल
-बीज
-पत्‍ते
-पंचांग

बरियार या बला के उपयोग

आयुर्वेदिक शास्त्रों ने बला के जिन गुणों का उल्लेख किया है उनके अनुसार बला का उपयोग विविध प्रकार के हेतुओं की पूर्ति के लिए किया जा सकता है।

• बला शारीरिक दुर्बलता को दूर कर पौरुष शक्ति को बढाती है ।

• यह प्रमेह, शुक्रमेह और रक्तपित्त की लाभदायक औषधि है ।

• बला प्रदर रोग, व्रण, मूत्रातिसार, सोज़ाक व उपदंश की गुणकारी औषधि है ।

• यह हृदय-दौर्बल्य व कृशता (दुबलापन) दूर करने में लाभप्रद है ।

• यह वात प्रकोप के कारण गृध्रसी, सिर दर्द, अर्दित, अर्धांग आदि वात विकारों को दूर करने के लिए उपयोगी सिद्ध होती है।

• यह बलदायक, रसायन, वृष्य (पौष्टिक), प्रजास्थापन, संग्राही, स्निग्ध और वात पित्त शामक होने से शरीर को पुष्ट बलवान बनाने वाली वीर्य की वृद्धि और पुष्टि करने वाली तथा स्वास्थ्य की रक्षा करने वाली है अतः स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी उपयोगी है।

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