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J&K में Article 370 हटाना संवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ने लगायी मुहर

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में जम्मू और कश्मीर से ऑर्टिकल 370 को हटाए जाने को संवैधानिक ठहराया है। साथ ही प्रदेश का दर्जा वापस देने और चुनाव करवाने के आदेश भी दिए हैं।

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने 2019 में जम्मू और कश्मीर से ऑर्टिकल 370 को हटाए जाने को संवैधानिक ठहराया है। साथ ही अदालत ने प्रदेश का दर्जा वापस देने के और प्रदेश में चुनाव करवाने के आदेश भी दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को बरकरार रखा है। Article 370 हटने के 4 साल, 4 महीने, 6 दिन बाद 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने फैसला सुनाया।

फैसले की फेहरिस्त

Article 370 हटाये जाने के पक्ष में तकनीकी रूप से इस मामले में पांच जजों की पीठ ने एक नहीं तीन फैसले दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की तरफ से एक फैसला दिया। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने सहमति में ही लेकिन अलग फैसले दिए।

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न्यायमूर्ती कौल ने 2019 के कदमों के अलावा और मुद्दों को भी उठाया और कहा कि जम्मू और कश्मीर में सेना के प्रवेश से कुछ और “जमीनी हकीकतें” पैदा हो गई थीं। उन्होंने कहा कि राज्य में ‘स्टेट’ और ‘नॉन-स्टेट’ ऐक्टरों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों की जांच के लिए एक “सत्य और पुनह मैत्री” आयोग का गठन किया जाना चाहिए।

वहीं,न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि धारा 370 “एसिमेट्रिक फेडरलिज्म” का उदाहरण है और जम्मू और कश्मीर की संप्रभुता का सूचक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि धारा 370 को हटाए से फेडरलिज्म का नुकसान नहीं हुआ।

Article 370 मुक्ति और सियासी हलचल

फैसले के प्रति अलग अलग प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। प्रधानमंत्री ने फैसले के तुरंत बाद उसकी सराहना करते हुए ट्वीट किया कि यह सिर्फ एक फैसला नहीं बल्कि उम्मीद की किरण है।

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लेकिन जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य सभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने फैसले को “दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण” बताया। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इसे “आईडिया ऑफ इंडिया का खात्मा” बताया।

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि वो “निराश” हैं लेकिन “निरुत्साहित” नहीं हैं और “संघर्ष जारी रहेगा।” कांग्रेस नेता और कश्मीर के पूर्व युवराज कर्ण सिंह ने प्रदेश के लोगों को हालात को स्वीकार करने और चुनाव लड़ने में अपनी ऊर्जा लगाने की सलाह दी।

Article 370 की कानूनी पेंच

सर्वोच्च अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या संसद के पास Article 370 को हटाने और जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने की शक्ति थी। साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वो प्रदेश में 30 सितंबर 2024 तक चुनाव आयोजित करवाए। इसके अलावा अदालत ने यह भी आदेश दिया कि जम्मू और कश्मीर को प्रदेश का दर्जा भी जल्द से जल्द लौटाया जाए, हालांकि इसके लिए अदालत ने कोई समय सीमा तय नहीं की।

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Article 370 को लेकर दलीलें

केंद्र के Article 370 हटाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 अर्जियां दी गई थीं। कुछ याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि धारा 370 एक स्थायी प्रावधान है और इसी किसी भी संवैधानिक प्रक्रिया के द्वारा बदला नहीं जा सकता है। यह भी दावा किया गया कि भारत और पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर रियासत के महाराज के बीच विलय संधि की जगह इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन (instrument of accession) पर हस्ताक्षर हुए थे। इसका मतलब है प्रदेश ने अपनी संप्रभुता का त्याग नहीं किया था। इसके तहत प्रदेश के लिए कानून बनाने की भारतीय संसद की शक्ति को सीमित कर दिया गया था। साल 2023 में 16 दिनों तक इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद 5 सितंबर 2023 को पांच जजों की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

आपको भी याद है 2019 की स्थिति

5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से Article 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था, साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू- कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। गौरतलब है कि राष्ट्रपति के आदेश के जरिए संविधान की अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को खत्म कर दिया गया था। उसके बाद राष्ट्रपति के एक और आदेश के जरिए राज्य का दो केंद्र-शासित प्रदेशों में विभाजन कर दिया गया। सुरक्षा के मद्देनज़र प्रदेश में अभूतपूर्व संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती कर दी गई थी, आवाजाही बंद कर की गई थी और मोबाइल फोन और इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गई थीं।

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धारा 370 हटाने का विरोध

घाटी में धीरे धीरे जैसे जैसे समय बीता और हालात में थोड़ी ढील दी गई, वैसे वैसे इन कदमों का विरोध सामने आया। बाद में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत इन दोनों कदमों को कानूनी रूप दे दिया गया। इस बात को गंभीरता से लेना पड़ेगा कि जब Article 370 हटाने जैसे अभूतपूर्वक कदम उठाये गये थे तब प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू था। हालांकि कई लोगों और संगठनों ने अदालत के दरवाजे खटखटाए और फिर सुप्रीम कोर्ट में इन कदमों को चुनौती देते हुए 20 से भी ज्यादा याचिकाएं(petitions) दायर की गईं। इनमें से कुछ याचिकाओं ने धारा 35ए को भी चुनौती दी है, जिसके तहत जम्मू और कश्मीर(Jammu & Kashmir) विधान सभा को प्रदेश के स्थायी निवासियों के लिए विशेष कानून बनाने के अधिकार मिला था।

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