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Karpoori Thakur Bharat Ratna Samman: “भारत रत्न” दिलाने में किसका प्रयत्न, आखिर किसके हैं कर्पूरी?

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को प्रधानमंत्री मोदी ने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न (Bharat Ratna Samman) देने का ऐलान किया है।

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Karpoori Thakur Bharat Ratna Samman
Karpoori Thakur Bharat Ratna Samman

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (Bharat Ratna Samman) देने की घोषणा कई मायने में खास है। जननायक कर्पूरी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान का ऐलान होने से सियासी गलियारे में हलचल बढ़ गया है। बता दें कि 24 जनवरी कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती है। इससे एक दिन पहले मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न दने का ऐलान किया है।

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Bharat Ratna Samman: प्रधानमंत्री की प्रसन्नता और सियासी सुगबुगाहट

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सामाजिक न्याय के प्रणेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न दिये जाने के निर्णय पर प्रसन्नता व्यक्त की है।

श्री मोदी ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर की जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करेगा। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है।

 “मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है। यह भारत रत्न न केवल उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा।”

Bharat Ratna Samman: सियासी सरगर्मी तेज

पद्म और भारत रत्न पुरस्कार हमेशा किसी व्यक्ति के योगदान को मान्यता देने के अलावा राजनीतिक संदेश देने का एक तरीका रहे हैं, मोदी सरकार अपने विकल्पों में विशेष रूप से चतुर रही है। इसमें ओबीसी और ईबीसी आरक्षण के प्रणेता और ‘जननायक’ की उपाधि से लोकप्रिय कर्पूरी ठाकुर का मामला भी सियासी धूर्री का हिस्सा है, ऐसे समय में जब विपक्ष जाति जनगणना की अपनी मांग को भाजपा के राम मंदिर के बाद के हिंदुत्व उत्साह का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत मुद्दा बनाने की उम्मीद कर रहा है।

सम्मान की परंपरा के सियासी रंग

जननायक के नाम से प्रसिद्ध कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की जानकारी राष्ट्रपति भवन से दी गई है। कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री रहे थे। बिहार में 24 जनवरी की अहमियत राजनीतिक रूप से पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। इस दिन पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती के बहाने राज्य के मुख्य राजनीतिक दलों में उनकी विरासत पर दावा जताने की आपसी होड़ नज़र आती है। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि कर्पूरी ठाकुर की पहचान अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के बड़े नेता की बना दी गई है।

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जातिगत जनगणना का लाभ किसको?

छोटी छोटी आबादी वाली विभिन्न जातियों के समूह ईबीसी में 100 से ज़्यादा जातियां शामिल हैं। इसमें भले अकेले कोई जातीय समीरकण के लिहाज से महत्वपूर्ण नहीं हो लेकिन सामूहिक तौर पर ये 29 फ़ीसदी का वोट बैंक बनाती हैं। 2005 में नीतीश कुमार को पहली बार मुख्यमंत्री बनाने में इस समूह का अहम योगदान रहा है। इस लिहाज से देखें तो ये समूह अब बिहार में राजनीतिक तौर पर बेहद अहम बन गया है, हर दल इस वोट बैंक को अपने खेमे में करना चाहता है।

मोदी की सत्ता और ‘भारत रत्न’ सम्मान

मोदी के सत्ता में आने के बाद से लगभग 10 वर्षों में अपने छठे भारत रत्न नामांकन में, नरेंद्र मोदी सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए चुना है। इसके अलावा अन्य पांच लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया उनमें शिक्षाविद्, स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष रहे मदन मोहन मालवीय, पूर्व प्रधान मंत्री और भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी, असमिया गायक और संगीतकार भूपेन हजारिका और आरएसएस नेता नानाजी देशमुख जैसी कद्दावर हस्तियां शामिल है।

1924 में 24 जनवरी को जन्म

कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितौझिया गांव में हुआ था। वे दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे और एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ किया था। उन्होंने कभी खुद को अपने संकल्प से विचलित नहीं होने दिया। इसके लिए उन्हें अपनी सरकार की कुर्बानी भी देनी पड़ी। बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को भी उन्होंने ही खत्म किया था।

स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े

कर्पूरी ठाकुर ने 1940 में पटना से मैट्रिक परीक्षा पास की थी। उस वक्त देश गुलाम था। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद कर्पूरी ठाकुर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और आचार्य नरेंद्र देव के साथ समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए। 1942 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

कभी भी हारे नहीं,जीतते रहे कर्पूरी

कर्पूरी ठाकुर ने 1952 में पहला विधानसभा चुनाव जीता था। इसके बाद कभी भी वे विधानसभा चुनाव नहीं हारे। वे अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने सामाजिक मुद्दों को अपने एजेंडे में आगे रखा। वे जनता के सवाल को सदन में मजबूती से उठाने के लिए जाने जाते थे। समाज के कमजोर तबकों पर होनेवाले जुल्म और अत्याचार की घटनाओं को लेकर कर्पूरी ठाकुर सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर देते थे।

सूबे का गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री

कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे हैं। पहली बार दिसंबर 1970 से जून 1971 तक वे मुख्यमंत्री रहे। वे सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल की सरकार में सीएम बने थे। सीएम बनने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को आरक्षण दिया था। वे दूसरी बार जनता पार्टी की सरकार में जून 1977 से अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे।