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Lal Krishna Advani Bharat Ratna: क्या आप जानते हैं आडवाणी को सम्मानित करने की खास वज़ह? रामरथ की यात्रा से ‘भारत रत्न’ तक का सफर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख के बाद लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) आरएसएस से जुड़े तीसरे ऐसे नेता हैं जिन्हें नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख के बाद लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) आरएसएस से जुड़े तीसरे ऐसे नेता हैं जिन्हें नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। साल 2015 में उन्हें पद्म विभूषण भी मोदी सरकार ने दिया। हर वर्ष आडवाणी के आडवाणी को भारत रत्न सम्मान नरेंद्र मोदी की अपने राजनीतिक गुरु को गुरुदक्षिणा है। आडवाणी और मोदी दोनों ने इस घोषणा को भावुक पल बताया है।
मोदी की महिमा और भारत रत्न
स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत रत्न से जुड़ी घोषणा सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों से उद्घोषणा कर चुके हैं। और x पर लिखा, “भारत के विकास में हमारे दौर के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक रहे आडवाणी जी का योगदान अविस्मरणीय है। उनका सफर जमीनी स्तर पर काम करने से शुरू होकर उप प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा करने तक का रहा है। उन्हें भारत रत्न देने का फैसला मेरे लिए बेहद भावुक घड़ी है। मुझे उनके साथ काम करने और उनसे सीखने के कई बार मौके मिले।”
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Lal Krishna Advani: सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न की बारी
प्रधानमंत्री मोदी का Lal Krishna Advani को भारत रत्न की घोषणा करते हुए उक्त संदेश गहरे निहितार्थ लिए हुए है। 2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए प्रथम की सरकार बनने के बाद से आडवाणी राजनीतिक रूप से भाजपा में ही हाशिए पर जाने लगे थे। पाकिस्तान जाकर मोहम्मद अली जिन्ना को सेकुलर बताकर मानो उन्होंने अपनी हिंदुवादी छवि के साथ ही समझौता कर लिया था किंतु उनका यह रूप न तो भाजपा को रास आया और न ही संघ परिवार को।

Lal Krishna Advani: “पीएम इन वेटिंग” बनकर रह गए आडवाणी
बता दें 2013 में गोवा में पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में जब Lal Krishna Advani के स्थान पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया तो आडवाणी सदा के लिए “पीएम इन वेटिंग” बनकर रह गए। यहां तक कि उन्हें सक्रिय राजनीति से हटाकर मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया।
यह भाजपा को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले नेता की राजनीतिक यात्रा का पूर्ण विराम था। 2014 के बाद नरेंद्र मोदी युग में विपक्ष ने कई बार आरोप लगाए कि नरेंद्र मोदी ने आडवाणी के राजनीतिक जीवन की बलि ले ली। जनता का एक बड़ा वर्ग भी यही सोच रखने लगा था किंतु आडवाणी ने अपनी राजनीतिक यात्रा के विराम को लेकर कभी सार्वजनिक रूप से नरेंद्र मोदी को लेकर प्रतिकूल बयानबाजी नहीं की।

सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा
स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस की सरकारों ने भी राम मंदिर मुद्दे में एक प्रकार से हाथ न जलाने का अघोषित निर्णय ले रखा था। लेकिन 1990 में आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा ने राम मंदिर मुद्दे को हिंदू समाज के अधिकांश घरों तक पहुंचा दिया था। इससे राजनीतिक रूप से भाजपा और आडवाणी को क्या लाभ हुआ, इसका आंकलन भिन्न हो सकता है किंतु राम भारत की आस्था हैं, इस भाव का देशव्यापी जागरण आडवाणी की रथयात्रा को जाता है।
इतना ही नहीं समस्त धर्मगुरुओं ने जो कार्य दशकों में नहीं किया था वह आडवाणी की राम रथयात्रा ने कर दिया था। आडवाणी की उपस्थिति ने राम मंदिर मुद्दे को सामाजिक वैधता प्रदान की जिसकी मजबूत नींव पर पत्थर रखकर आज हिंदूवादी राजनीति अपने चरम पर है।

भाजपा को हिंदुओं की पार्टी का तमगा दिलवाया
ये वही आडवाणी थे जिन्होंने जननेता की छवि न होने के बाद भी भाजपा को हिंदुओं की पार्टी का तमगा दिलवाया। 23 अक्तूबर, 1990 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने प्रधानमंत्री वीपी सिंह के कहने पर समस्तीपुर में आडवाणी की रथयात्रा को रोककर उन्हें गिरफ्तार करवाया तो संभवतः राजनीति के दोनों चतुर खिलाड़ियों को अंदेशा नहीं होगा कि उनका यह कदम उनकी राजनीतिक जमीन को बंजर कर देगा। और हुआ भी यही। आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है तो इसमें आडवाणी द्वारा फैलाई गई जनचेतना की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हालांकि बाबरी ढांचा विध्वंस की घटना को आडवाणी ताउम्र दुःखद घटना क़रार देते रहे हैं।
देश और पार्टी को स्वहित से ऊपर रखा
लाल कृष्ण आडवाणी उन विरले नेताओं में से हैं जिन्होंने भाजपा के ध्येय वाक्य – चाल, चेहरा और चरित्र को अपने राजनीतिक जीवन में ढाला। 1991-93 में नेता प्रतिपक्ष रहते हुए जैन हवाला कांड में नाम आया तो 1996 में उन्होंने संसदीय राजनीति से इस्तीफा देते हुए घोषणा की थी, जब तक इस कांड से बेदाग बरी नहीं हो जाता, संसदीय राजनीति से दूर रहूँगा। इस मामले में आडवाणी ने अपने सबसे विश्वस्त साथी अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह को भी नहीं माना।
1997 में जब सर्वोच्च न्यायालय से बरी हुए तभी पुनः संसदीय राजनीति का अंग बने। आडवाणी के पास 1996 में प्रधानमंत्री बनने का अवसर था किंतु 1995 में मुंबई के शिवाजी पार्क की ऐतिहासिक रैली में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया। अपनी आत्मकथा “माई कंट्री माई पीपुल” में उक्त घटना का उल्लेख करते हुए आडवाणी ने लिखा है कि क्या सही है और देश तथा पार्टी के लिए क्या बेहतर है, के तर्कसंगत आंकलन के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा था। वे अपने निर्णय को त्याग का नाम देने के पक्षधर भी नहीं रहे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आडवाणी
सूत्रों की माने तो 8 नवंबर, 1927 को अविभाजित भारत में सिन्ध के कराची में जन्मे लाल कृष्ण आडवाणी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। बचपन में उनका नाम लाल आडवाणी ही रखा गया था। बाद में उनके नाम में कृष्ण जुड़ गया और वे लाल कृष्ण आडवाणी हो गये।
राजनीति से इतर उनकी संगीत और लेखन में रुचि है। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि किसी जमाने में लाल कृष्ण आडवाणी अंग्रेजी पत्रिका ऑर्गनाइजर के लिए फिल्म समीक्षाएं लिखा करते थे। उन्हें सत्यजीत रॉय की फिल्में बड़ी पसंद हैं। लता मंगेशकर के गाने सुनना भी उन्हें बड़ा पसंद है।
कहते हैं कि मात्र 14 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बनकर वे कराची शहर में संघ की शाखा संचालित करने लगे थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात उन्होंने 1952 तक अलवर, कोटा, बूंदी, झालावाड़ और भरतपुर में बतौर प्रचारक काम किया। आडवाणी की अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी और यही कारण है कि उन्हें 1957 में दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जोड़ा गया ताकि अभिजात वर्ग में वे तत्कालीन जनसंघ की विचारधारा पहुंचा सकें। 1977 में आपातकाल के पश्चात जनता पार्टी की सरकार में आडवाणी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया।

राजनैतिक यात्राओं के सूत्रधार
वर्तमान राजनीति में यात्राओं से जनमानस को जोड़ने की कला सिखाने वाले आडवाणी किसी दूरदर्शी व्यक्ति की भांति देश की जनता की नब्ज पकड़ना और उसकी भावना का सम्मान करना जानते हैं। उनमें अध्ययन करने की अद्भुत क्षमता है और अपनी बात को संसद में हमेशा तथ्यों के साथ रखते थे। हवाला कांड में जब उनका नाम आया तो संसद की सदस्यता से त्यागपत्र देने में उन्होंने एक दिन की देरी नहीं की। यह राजनीति में आडवाणी द्वारा स्थापित नैतिकता का चरम था। अपनी पार्टी में स्थान-स्थान पर कर्मठ कार्यकर्ताओं को निखारकर उन्हें नेतृत्वकर्ता की भूमिका में लाना आडवाणी का विशेष गुण है।
इतना ही नहीं अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह जैसे कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण नेता के रूप में आगे बढ़ाने का काम आडवाणी ने ही किया। वास्तव में लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देकर नरेंद्र मोदी सरकार ने राजनीति में “कार्यकर्ता प्रथम” के जनक को सम्मानित किया है।