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Tejashwi की ताजपोशी के लिए सवर्ण मोहरें सेट करते Lalu Yadav

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2019 में कन्हैया कुमार सीपीआई में थे। सीपीआई राजद के महागठबंधन में था। कन्हैया कुमार ने चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगा तो लालू यादव ने बेगूसराय की सीट कांग्रेस को दे दी।

2024 में कन्हैया कुमार कांग्रेस में थे, कांग्रेस राजद के साथ महागठबंधन में थी। कन्हैया कुमार ने बेगूसराय से टिकट मांगा। लालू यादव ने बेगूसराय की सीट सीपीआई को दे दी।

पप्पू यादव का कद बिहार में किसी भी यादव नेता से ज्यादा प्रभावशाली है। अगर वो मजबूत होते हैं तो राजद के रहते हुए यादवों में उनका कद बढ़ सकता है। लालू ने गेम सेट कर दिया। पप्पू यादव दरकिनार किए हुए।

महाभारत क्यों हुआ था जानते हैं? इसलिए नहीं कि कौरव की औलादें कठकाजी थे, बल्कि इसलिए परिवार और गद्दी के लिए धृतराष्ट्र अंधा था। लालू यादव बिहार के वही धृतराष्ट्र है। कांग्रेस राहुल गांधी के करियर के लिए चुनाव में गोटी सेट कर रही है, लालू तेजस्वी यादव का करियर बनाने के लिए चुनाव के मोहरे सेट कर रहे हैं।

कन्हैया कुमार पप्पू यादव या कोई भी, इनका कद बढ़ना तेजस्वी के लिए खतरा है। कांग्रेस को भी पता है, इसलिए कन्हैया कुमार दोनों जगह से ही झापड़ खा कर मुस्कुराते हुए तस्वीर खिंचवा रहें हैं। यकीन मनाइए लालू और कांग्रेस का दोहरापन पर्याप्त कारण होगा इस बात को जस्टिफाई करने के लिए कि किसी दिन वो सोकर उठे और उकता कर बीजेपी ज्वाइन कर ले। EVM में दोष निकालने वाला विपक्ष आपको कन्हैया के पुराने विडियोज दिखायेगा, लेकिन ये नहीं बताएगा कि उसने क्या किया।

परिवारवाद का आरोप चिराग पासवान पर है। उन्होंने सीटें बेची है। अपने रिश्तेदार को टिकट दिया है। यही आरोप BJP भी राजद वाले लगा रहे हैं। लेकिन दोनों बेटे के सेट करने के बाद अब दोनों बेटियों को स्थापित करने वाले लालू यादव पर आरोप लगे तो तरह तरह के तर्क सामने आते हैं।

शहाबुद्दीन की मौत के बाद उनके बेटे ओसामा का कद ना बढ़ जाए इसलिए हीना सहाब को भाव नहीं दे रही है आरजेडी। वो बेचारी छटपटा के रह गई लेकिन टिकट नहीं मिला। पप्पू यादव के खिलाफ बीमा भारती के सपोर्ट में जान बूझकर तेजस्वी चुनाव प्रचार करने जा रहे हैं, भले सीट BJP जीत जाए, पप्पू यादव नहीं जीतने चाहिए। महागठबंधन की लड़ाई बाहर काम, भीतर ज्यादा है। भाजपा के शीर्षवाद एकदम व्यवस्थित है।

भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को पहचानती है। ऐसे ढेरों उदाहरण है जब भाजपा ने जमीन से उठाकर किसी को मंत्री तो किसी को सांसद बना दिया है। भाजपा की मजबूती उनके कार्यकर्ता है। लोकल स्तर पर अवसरों में भले आपको पॉलिटिकल बैकग्राउंड का फायदा मिल जाए, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता कि आप बड़े नेता है तो आप मनमानी कर पाएंगे। वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के पत्ते कटना इस बात का प्रमाण है।

बिहार में सवर्णों में भूमिहार समाज को इस बार राजद ने फोड़ने की स्ट्रेटजी बनाई है। टिकट भी बांटे हैं। कल तक भाजपा का झंडा धोने वाले लोग, आज अचानक से हरा गमछा लपेट कर समाजवादी बने हुए है। कभी इनके पुराने पोस्ट पढ़ लीजिए और अभी के हालात से मिलाएं तो थूक के चाटने वाली नौबत याद आ जाती है। सड़कों पर ये आपको जातिवादी कहेंगे, लेकिन इनका जातिवाद समाजवाद कहलाता है।

खैर राजनीति है, और राजनीति में एक पुराना शेर है कि
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी,
जिसको भी देखना, कई बार देखना