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Menopause को लेकर क्यों आज भी शर्मशार हैं महिलाएं? ऐसे मिलेगी 100 फीसदी छुटकारा

Menopause या मेनोपॉज के मायने में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि पीरियड्स या माहवारी को सदियों से कलंकित किया गया है। ओल्ड टेस्टामेंट में माहवारी को ‘संक्रामक समय’ कहा गया

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Menopause या मेनोपॉज के मायने में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि पीरियड्स या माहवारी को सदियों से कलंकित किया गया है। ओल्ड टेस्टामेंट में माहवारी को ‘संक्रामक समय’ कहा गया, वहीं हिंदू धर्म में कई इसे ‘अस्वच्छ’ बताते हैं। इसके साथ अशुद्धि या शर्म का भाव जुड़ा होता है।

पीरियड्स और मेनोपॉज, अब भी दोनों के साथ शर्म और झिझक का भाव जुड़ा है। कई महिलाएं बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें माहवारी आने पर शर्म महसूस होती थी और मेनोपॉज हुआ, तो पीरियड्स के ना आने पर झेंप होने लगी।

https://www.dw.com/hi/menopause-needs-a-societal-rethink/a-68474802

Menopause: ‘दि लैंसेट’ के अध्ययनों में हुआ खुलासा

5 मार्च को ‘दि लैंसेट’ में अध्ययनों की एक नई शृंखला प्रकाशित हुई। इसमें मेनोपॉज के लिए एक नई सोच लाने की बात कही गई है। इन अध्ययनों में समाज से अपील की गई है कि वे मेनोपॉज को बीमारी के तौर पर ना देखें। एक ऐसा मॉडल लाने की कोशिश करें, जो मेनोपॉज के दौरान महिलाओं की मदद करे। लैंसेट की शृंखला में एक मुख्य थीम मेनोपॉज से जुड़े कलंक और शर्म से निपटने की जरूरत है। एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर मेनोपॉज को सामान्य माना जाने लगे और महिलाओं को निष्पक्ष और विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध कराई जाए, तो वे बेहतर ढंग से इससे जुड़े फैसले ले सकती हैं।

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Menopause को लेकर मौजूदा दौर में भी महिलाओं के मन में यह बिठा दिया जाता है कि वे पीरियड्स के बारे में बात ना करें। एक दूसरा पहलू उम्र बढ़ने से भी जुड़ा है। कई महिलाओं को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वे बॉस को अपने मेनोपॉज के बारे में नहीं बता सकतीं क्योंकि इसका मतलब होगा कि वे इससे गुजर चुकी हैं। हमारे समाज में उम्र बढ़ने का मतलब होता है, एक महिला के रूप में बेकार हो जाना।

ब्रिटेन जैसे कुछ देशों में मेनोपॉज पर विचार-विमर्श बढ़ रहा है। इससे जागरुकता बढ़ रही है और शर्म और कलंक को कम करने में भी मदद मिल रही है। लैंसेट के अध्ययनों में उम्मीद जताई गई है कि मेनोपॉज को देखने के नजरिए में बड़ा बदलाव होगा। इसे एक बीमारी नहीं, बल्कि महिलाओं के जीवन की एक सामान्य घटना माना जाएगा।

Menopause को लेकर भ्रांतियां

ज्यादातर लोगों का मानना है कि आधुनिक विज्ञान ने मेनोपॉज से जुड़े लांछन को बढ़ावा देने का काम किया है। 20वीं सदी के वैज्ञानिकों (खासतौर पर पुरुषों) ने पता लगाया कि मेनोपॉज के लक्षणों को हार्मोन उपचार के जरिए ठीक किया जा सकता है, जिसमें एस्ट्रोजन हार्मोन का इस्तेमाल होता है। मेनोपॉज होना बेहद सामान्य और प्राकृतिक है। लेकिन शोध ने इसे हार्मोन की कमी से होने वाली बीमारी घोषित कर दिया। ऐसी बीमारी, जिसके लिए इलाज की जरूरत होती है।

क्या हार्मोनल रिप्लेसमेंट थेरेपी सही विकल्प?

बाद में ‘हार्मोनल रिप्लेसमेंट थेरेपी’ को मेनोपॉज के इलाज के तौर पर प्रचारित किया गया। 1950 के दशक में पुरुषों से कहा गया कि हार्मोन की गोलियां महिलाओं को पहले जैसा बना देती हैं। यह लांछन आज भी मौजूद है। इस वजह से कई महिलाएं मेनोपॉज के अपने अनुभवों के बारे में बात नहीं कर पातीं। वाइस कहती हैं, “कल्पना कीजिए कि आप प्यूबर्टी को एक बीमारी घोषित कर दें और बच्चों को इसका डर दिखाएं। फिर उनसे कहें कि एक गोली इसे ठीक कर सकती है। मेनोपॉज को अक्सर इसी तरह पेश किया जाता है।”

अभिनेत्री ग्वेनेथ पाल्ट्रो-फाइल फोटो

क्या है मेनोपॉज ?

अभिनेत्री ग्वेनेथ पाल्ट्रो ने एक पुराने इंटरव्यू में मेनोपॉज के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा था, “मुझे लगता है कि मेनोपॉज आने से पहले शरीर में बहुत सारे बदलाव होते हैं। मैं हार्मोन और मूड में हो रहे बदलाव को महसूस कर पाती हूं। पसीना आने लगता है। आप बिना किसी बात के अचानक गुस्सा होने लगते हैं।”

Menopause में पीरियड्स बंद होना स्वाभाविक

मेनोपॉज में महिलाओं को पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं। इसके बाद महिलाओं की प्रजनन शक्ति खत्म हो जाती है। इसकी शुरुआत प्रजनन हार्मोन, खासकर एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन में धीरे-धीरे कमी आने से होती है। ये दोनों हार्मोन अंडाशयों में बनते हैं। मेनोपॉज की प्रक्रिया औसतन सात साल तक चलती है और यह आमतौर पर 45 से 55 साल की उम्र के बीच होता है। हार्मोन में बदलाव की वजह से महिलाओं को कई तरह के लक्षणों का सामना करना पड़ता है। जैसे- गर्मी लगना, रात में पसीना आना और मूड बदलना। 38 फीसदी महिलाएं इन लक्षणों को मध्यम से गंभीर बताती हैं।

Menopause की गंभीरता

एक अध्ययन में बताया गया है कि जल्दी होने वाले मेनोपॉज को गंभीरता से लेना चाहिए। जिन महिलाओं को जल्दी मेनोपॉज होता है, उन्हें दिल से जुड़ी बीमारियों और ऑस्टियोपोरोसिस का ज्यादा खतरा होता है। अध्ययन के मुताबिक, दुनियाभर में करीब आठ से 12 फीसदी महिलाओं को जल्दी या समय से पहले मेनोपॉज होता है। भारत जैसे देशों में यह आंकड़ा ज्यादा है। यहां करीब 20 फीसदी महिलाओं को 30 या 40 साल की उम्र के बाद ही मेनोपॉज होने लगता है। जल्दी होने वाले मेनोपॉज की पहचान अक्सर देर से हो पाती है और इसका ढंग से ध्यान भी नहीं रखा जाता।

Menopause से जुड़े कलंक से निपटना

हाल के अध्ययनों से पता चला है कि मेनोपॉज से जुड़े लांछन समाज में कितनी गहराई तक मौजूद हैं। कई महिलाओं ने बताया कि शुरुआत में उन्हें माहवारी आने पर शर्म महसूस होती थी और अब माहवारी के ना आने पर होती है।

अध्ययनकर्ताओं ने लिखा है कि मेनोपॉज को एक खराब और गिरावट वाला समय मानने की सोच को चुनौती देनी होगी। साथ ही, मेनोपॉज के अनुकूल काम का माहौल तैयार करना होगा। इससे महिलाओं को काफी मजबूती मिल सकती है। 2017 में रेचल वाइस ने एक चैरिटी मेनोपॉज कैफे की शुरुआत की थी। यहां होने वाले कार्यक्रमों में महिलाएं मेनोपॉज के अपने अनुभव बता सकती थीं और दूसरे लोगों से चर्चा कर सकती थीं। अध्ययन में मेनोपॉज से गुजर रही महिलाओं को मजबूत बनाने और इससे जुड़े मिथकों को दूर करने में इस कैफे को एक प्रभावी कदम बताया गया।