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Munna Shukla Vaishali 2024: मुन्ना नहीं मोदी मुद्दा है वैशाली लोकसभा का, हवा बनाने की कोशिश नाकाम

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Munna Shukla Vaishali: लोकसभा चुनाव में वैशाली का रणक्षेत्र रोमांचक होता जा रहा है। कई मुद्दों पर बात करेंगे।राजद ने लालटेन के सिंबल पर जदयू के पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला को टिकट दिया है। वहीं चिराग पासवान ने अपने वर्तमान सांसद वीना देवी पर भरोसा जताया है। वीणा देवी के राजनीतिक कद की बात करें तो दिनेश सिंह उनके पति है, जो JDU से MLC हैं। बेटी कोमल सिंह भी चुनाव लोजपा के सिंबल पर मुजफ्फरपुर गायघाट सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं।

वीणा देवी जीतेंगी या हारेंगी इसपर बात करने से ज्यादा अहम है ये बात करना कि वैशाली की जनता किसे जीतवाएगी। क्योंकि वीणा देवी हो या रामा सिंह, दोनों ने राजद के सबसे दिग्गज नेता रघुवंश प्रसाद सिंह को मात दी है। इस क्षेत्र में चेहरे बदल सकते हैं, जीत का मार्जिन बदल सकता है, लेकिन नतीजा नहीं बदलता।

Munna Shukla Vaishali: View और TRP के लिए आगे पीछे घूम रहे हैं कुछ Youtuber

अभी डिजिटल मीडिया के दौर में यदि कोई भी चैनल View और टीआरपी के लिए जनता के सामने mic लगाए और ये सवाल पूछे कि वीणा देवी या मुन्ना शुक्ला? जवाब आएगा मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla Vaishali). View भी आयेंगे और नए नए समाजवादी बने एक खास वर्ग के लोग इसे जमकर शेयर भी करेंगे। चर्चा बनी रहेगी कि वीणा देवी और मुन्ना शुक्ला में कौन? तो जवाब है मुन्ना शुक्ला.

अब जरा सवाल बदल दीजिए। सवाल पूछिए, राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के कौन? वहीं जनता रहेगी, वही mic रहेगा, वही कैमरा रहेगा लेकिन जवाब बदल जाएगा. पूछिए कि राम मंदिर बनाने वाले या राम मंदिर में हिंदुओं पर गोली चलवाने वाले. जवाब बदल जाएगा. पूछिए कि पत्थरबाजों के लिए आंसू बहाने वाले या सेना का मनोबल बढ़ाने वाले. जवाब बदल जाएगा. जब चुनाव कैंपेन शुरू होगा, भाजपा के चुप्पा वोटर एक्टिव होंगे, योगी मोदी को चाहने वाले और शहाबुद्दीन और मुख्तार अंसारी को नकारने वाले जब वोट डालने जाएंगे तो जवाब बदल जाएगा..तब ना वीणा देवी दिमाग में रहेंगी, ना मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla Vaishali). तब देश दिमाग में होगा, और लोग राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी में से एक को चुनेंगे।

ये विधानसभा चुनाव नहीं है। आज जो स्थिति है। सिंबल भी है, नाम भी है, यदि यही चुनाव विधानसभा का होता तो नतीजे आज ही स्पष्ट होते। लेकिन ये राज्य नहीं, देश का चुनाव है। इसमें राम मंदिर मुद्दा है। इसमें कश्मीर की शांति मुद्दा है। इसमें पाकिस्तान मुद्दा है। इसमें नेशनल सिक्योरिटी मुद्दा है। इसमें धार्मिक वर्चस्व मुद्दा है। इसमें मथुरा और काशी मुद्दा है। इसमें मोदी मुद्दा है।

सोशल मीडिया की हवाबाजी से अलग बात करें तक मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla Vaishali) कड़ी टक्कर देंगे लेकिन कितना ये योगी और मोदी का हेलीकॉप्टर उतरने के बाद तय होगा। क्योंकि याद हो, लालगंज विधानसभा चुनाव 2020 में लड़ाई से बाहर चल रहे भाजपा प्रत्याशी संजय सिंह को योगी आदित्यनाथ की एक जनसभा ने विजेता घोषित कर दिया था। इस बार भी हेलीकॉप्टर उतरेगा। और जरा सोचिए. योगी आए और मंच से कहें कि बाहुबलियों के घर पर बुलडोजर चलाने का वक्त आ गया है, तब क्या हश्र होगा यहां राजद के नए नए समर्थकों का।

Munna Shukla Vaishali: लगातार गिरा है मुन्ना शुक्ला का Political Graph

एक फैक्ट ये भी है कि राजद उम्मीदवार मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla Vaishali) का पॉलिटिकल ग्राफ लगातार गिरा है। 2009 के लोकसभा में, जब उनका पॉलिटिकल करियर शीर्ष पर था, देश में मोदी लहर नाम की कोई चीज नहीं थी, जदयू में नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेताओं में मुन्ना शुक्ला जाने जाते थे, और..बिहार में नीतीश कुमार की आंधी चल रही थी, बिहार में नीतीश कुमार के पहले पांच साल बेमिसाल रहे थे. उस दौर में भी 2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजे याद कीजिए. जदयू और नीतीश कुमार के लहर में चुनाव लड़ने के बाद भी मुन्ना शुक्ला 20,000 वोट से हार गए थे।

उसके बाद हर चुनाव में मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla Vaishali) को जनता ने नकारा है। 2009 की लोकसभा चुनाव के बाद 2014 के लोकसभा में जदयू ने मुन्ना शुक्ला से किनारा कर लिया। मुन्ना शुक्ला ने लोकसभा का टिकट मांगा, जदयू ने इनकार करते हुए रामा सिंह को टिकट दिया। मुन्ना शुक्ला ने निर्दलीय होकर हाथ मारा. और 3 लाख से अधिक वोटों से हार गए। मुन्ना शुक्ला की पत्नी अन्नू शुक्ला को वैशाली लोकसभा तब 1 लाख 4 हजार वोट मिले थे। वैशाली लोकसभा में यही एक लाख वोट है जो मुन्ना शुक्ला अपना कमाया हुआ है. और जिसे वो बिना किसी पार्टी सिंबल के भी हासिल कर सकते है.

Munna Shukla Vaishali: हर बार नकार रही है जनता, Nitish Kumar ने भी फेरा मुंह

2019 में मुन्ना शुक्ला की फिर किसी ने ना सुनी. टिकट लोजपा से वीणा देवी को दिया गया. मुन्ना शुक्ला ने जनता से नोटा दबाने की अपील कर डाली. ऐसा कर के वो नीतीश कुमार की नजर में और चढ़ गए. जनता में स्पष्ट संदेश गया कि जब आपके जात को टिकट मिले तो सब ठीक, लेकिन जब दुसरे जात को टिकट मिल जाए तो आप NOTA दबायेंगे, लेकिन किसी और जात का प्रतिनिधित्व स्वीकार नहीं करेंगे. जनता ये समझ गयी. नीतीश कुमार समझ गए. नतीजा यह हुआ कि 2020 के बिहार विधानसभा में भी किसी पार्टी ने मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla Vaishali) को टिकट नहीं दिया. निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले मुन्ना शुक्ला अपने घर में लगभग 40 हजार वोटों से चुनाव हार गए. मुन्ना शुक्ला को 28 हजार के करीब वोट मिले.

बिहार विधानसभा का यह चुनाव इस बात का प्रमाण था कि मुन्ना शुक्ला द्वारा पोषित जातीय उन्माद को अब लालगंज या इसके आस पास का क्षेत्र पसंद नहीं करता. यही कारण है कि मुन्ना शुक्ला जैसे धाकड़ चेहरे के बजाये लोगों ने संजय सिंह जैसे बिलकुल नए चेहरे को चुन लिया लेकिन मुन्ना शुक्ला पर भरोसा नहीं किया. इसके पीछे सबसे प्रमुख कारण कहा जाता है, एक ख़ास सामंती सोच की दबंगई.

2024 लोकसभा चुनाव में मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla Vaishali) ने पाला बदल लिया. उनके पाला बदलते ही उन तमाम लोगों ने भी पाला बदल लिया, जो कल तक भाजपाई थे, राम भक्त थे, ABVP और हिन्दू संगठनों के सक्रिय्र सदस्य थे. वो सभी रातो रात समाजवादी हो गए, कांग्रेस और राहुल गांधी के समर्थक हो गए.क्योंकि.. जाति important है.. अपने जात को सत्ता में लाने के लिए उन्हें तमाम आदर्शो से समझौता करना कुबूल है, लेकिन दुसरी जात का आगे आये तो NOTA दबाने की अपील की जाती है.

आखिरी में यही कि इस बार का माहौल क्या है. देखिये. वैशाली लोकसभा में एक से डेढ़ लाख वोट मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla Vaishali) के नाम पर पड़ता है. उसके अलावा राजद के टिकट पर 2 से ढाई लाख वोट पड़ते हैं. सहनी वोट 1 लाख के आस पास है. यानी महागठबंधन को 4 साढ़े चार लाख वोट पड़ने की उम्मीद है. अब दस लाख से अधिक वोटों में मोदी फैक्टर काम करता है, और मुन्ना शुक्ला के खिलाफ रहने वाला BJP का चुप्पा वोटर काम करता है तो 6-7 लाख वोट बिखड़ा हुआ है. बीजेपी के नाम पर 4 लाख के आस पास वोट पड़ते है.. बाकी 3 लाख वोटों में जिसका सिक्का चला वो बाजी मार जाएगा.

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